विश्व पियानो दिवस? जानें इस वाद्य यंत्र की कहानी

विश्व पियानो दिवस आम वर्षों में 29 मार्च और लीप ईयर में 28 मार्च को मनाया जाता है। इसे 2015 में निल्स फ्राहम ने शुरू किया था। यह दिन पियानो के महत्व, इसके इतिहास, तकनीकी विकास और सांस्कृतिक प्रभाव को समझने का उत्सव है। 29 मार्च को पूरी दुनिया में विश्व पियानो दिवस (World Piano […]

विश्व पियानो दिवस आम वर्षों में 29 मार्च और लीप ईयर में 28 मार्च को मनाया जाता है। इसे 2015 में निल्स फ्राहम ने शुरू किया था। यह दिन पियानो के महत्व, इसके इतिहास, तकनीकी विकास और सांस्कृतिक प्रभाव को समझने का उत्सव है।

29 मार्च को पूरी दुनिया में विश्व पियानो दिवस (World Piano Day) मनाया जाता है। विश्व पियानो दिवस की शुरुआत 2015 में निल्स फ्राहम ने की थी। बता दें कि इसे हर वर्ष साल के 88वें दिन मनाया जाता है और इसकी एक बेहद खास वजह है। दरअसल, एक मानक पियानो में 88 कीज़ (keys) होती हैं, 52 सफेद और 36 काली, और इसी वजह से इसे साल के 88वें दिन मनाने की परंपरा शुरू हुई। यह दिन संगीत प्रेमियों, पियानोवादकों और इस शानदार वाद्य यंत्र के इतिहास को समर्पित होता है। इस अवसर पर हम आपको पियानो की दुनिया में एक यात्रा पर ले चलते हैं और इसके महत्व, इतिहास, तकनीक और सांस्कृतिक प्रभाव के बारे में बताने की कोशिश करते हैं।

पियानो का आविष्कार और इतिहास

पियानो के आविष्कार का श्रेय इटली के बार्टोलोमियो क्रिस्टोफोरी (Bartolomeo Cristofori) को दिया जाता है। उन्होंने 1700 के आसपास इस वाद्य यंत्र का अविष्कार किया था। उस समय तक संगीत में हार्पसीकॉर्ड और क्लैविकॉर्ड जैसे वाद्य यंत्र लोकप्रिय थे, लेकिन इनमें एक कमी यह थी कि इनकी ध्वनि की तीव्रता यानी कि वॉल्यूम को नियंत्रित नहीं किया जा सकता था। क्रिस्टोफोरी ने एक ऐसा वाद्य यंत्र बनाया जो धीमी और तेज ध्वनि को नियंत्रित कर सके, जिसे उन्होंने ‘ग्रैविसेम्बालो कोल पियानो ए फोर्टे’ नाम दिया, जिसका मतलब है ‘धीमे और तेज स्वर वाला हार्पसीकॉर्ड।’ बाद में इसे ही संक्षेप में ‘पियानो’ कहा जाने लगा। 

पियानो का अविष्कार संगीत के इतिहास में एक क्रांतिकारी कदम था। क्या आप जानते हैं कि क्रिस्टोफोरी के बनाए मूल पियानो में से केवल 3 ही आज बचे हैं? ये कीमती वाद्य यंत्र न्यूयॉर्क के मेट्रोपॉलिटन म्यूजियम ऑफ आर्ट, रोम के नेशनल म्यूजियम ऑफ म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट्स और जर्मनी के लाइपजिग यूनिवर्सिटी में रखे गए हैं।

क्या है पियानो के विकास की कहानी?

18वीं और 19वीं शताब्दी में पियानो का डिजाइन और तकनीक तेजी से बदली। लकड़ी के फ्रेम की जगह लोहे के फ्रेम आए, जिससे यह भारी तारों के तनाव को सहन कर सके। एक औसत पियानो के तारों पर कुल 20 टन तक का तनाव होता है। यह जटिलता ही इसे इतना अनूठा बनाती है। 19वीं सदी में पियानो घर-घर में लोकप्रिय हो गया, खासकर यूरोप और अमेरिका में। यह न केवल एक वाद्य यंत्र था, बल्कि सोशल स्टैटस का एक प्रतीक भी बन गया था। उस समय इसे ‘ड्रॉइंग रूम’ का एक अभिन्न हिस्सा माना जाता था, जहां परिवार और मेहमान संगीत का आनंद लेते थे।

कई महान संगीतकारों की प्रेरणा बना पियानो

पियानो ने दुनिया के कई महान संगीतकारों को प्रेरित किया। वोल्फगैंग एमादेउस मोजार्ट, लुडविग वान बीथोवन, फ्रेडेरिक शोपां और फ्रांज लिस्ट जैसे संगीतकारों ने पियानो के लिए ऐसी रचनाएं बनाईं जो आज भी कालजयी हैं। बीथोवन, जो बाद में बहरे हो गए थे, ने अपने अंतिम दिनों में पियानो को छूकर उसके कंपन से संगीत की रचना की। उनकी ‘मूनलाइट सोनाटा’ आज भी पियानो की सबसे लोकप्रिय रचनाओं में से एक है।

शोपां को ‘Poet of The Piano’ कहा जाता था। उनकी रचनाएं, जैसे ‘नॉक्टर्न्स’ और ‘बालेड्स’ पियानो की भावनात्मक गहराई को दर्शाती हैं। दूसरी ओर, फ्रांज लिस्ट ने अपनी तकनीकी कुशलता से पियानो को सोलो परफॉर्मेंस का सुपरस्टार बना दिया। हंगरी के इस पियानिस्ट के कंसर्ट में दर्शक इतने दीवाने हो जाते थे कि उनकी दिवानगी ‘Lisztomania’ के नाम से मशहूर हो गई।

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